Dharm Nagri Bharat (Temples in India)

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Badami Cave Temples
Badami cave temples

The Badami cave temples are a complex of Hindu and Jain cave temples located in Badami, a town in the Bagalkot district in northern part of Karnataka, India. The caves are important examples of Indian rock-cut architecture, especially Badami Chalukya architecture, and the earliest date from the 6th century. Badami is a modern name and was previously known as Vataapinagara, the capital of the early Chalukya dynasty, which ruled much of Karnataka from the 6th to the 8th century. Badami is situated on the west bank of a man-made lake ringed by an earthen wall with stone steps; it is surrounded on the north and south by forts built in later times.

HJKL
HK
Badami cave temples
North
Badami Cave Temples
Badami cave temples

The Badami cave temples are a complex of Hindu and Jain cave temples located in Badami, a town in the Bagalkot district in northern part of Karnataka, India. The caves are important examples of Indian rock-cut architecture, especially Badami Chalukya architecture, and the earliest date from the 6th century. Badami is a modern name and was previously known as Vataapinagara, the capital of the early Chalukya dynasty, which ruled much of Karnataka from the 6th to the 8th century. Badami is situated on the west bank of a man-made lake ringed by an earthen wall with stone steps; it is surrounded on the north and south by forts built in later times.

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Badami cave temples
Dev Deveshwar Mahadev Naimisharanya

देव देवेश्वर महादेव मंदिर एक स्वयंभू शिव लिंग से संबंधित है।

अट्ठासी हजार ऋषि मुनियों की तपस्या से प्रसन्न होकर वायु देवता ने स्वयं इस शिवलिंग की स्थापना करके ऋषि मुनियों को शिव की मर्यादा और पाशुपात स्त्वन को बताया था वामन पुराण की माने तो इस प्राचीन देव देवेश्वर मंदिर में भक्त प्रहलाद द्वारा पूजा अर्चना का उल्लेख मिलता है लोक प्रिय महाभारत ग्रन्थ में उल्लेख मिलता है कि शिव देवदेवेश्वर की महिमा से एक मृत बालक जीवित हो उठा था तभी से इस सिद्ध शिवलिंग का प्रताप विश्वविख्यात चल रहा है देवदेवेश्वर की सच्ची महिमा एवं उनके प्रताप की एक मध्ययुगीन ऐतिहासिक गाथा भी प्रचलित है शिव पार्वती संबाद की माने तो भगवान शिव के 42 अवतारों में एक अवतार नैमिष की पावन धरती पर हुआ है उन्हीं को देवदेवेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है जिससे सम्पूर्ण नैमिष धाम के रक्षक भी माने जाते है धर्माचार्यो की माने तो आज भी इस शिव मंदिर में मध्य रात्रि के दौरान देव संसद चलती बताई जाती है जिससे मंदिर के पुजारी व्दारा मध्य रात्रि के पहले ही मंदिर के कपाट बन्द कर दिये जाते है अन्यथा मध्य रात्रि को मंदिर के कपाट अपने आप स्वतः बन्द हो जाते है

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Dev Deveshwar Mahadev Naimisharanya

देव देवेश्वर महादेव मंदिर एक स्वयंभू शिव लिंग से संबंधित है।

अट्ठासी हजार ऋषि मुनियों की तपस्या से प्रसन्न होकर वायु देवता ने स्वयं इस शिवलिंग की स्थापना करके ऋषि मुनियों को शिव की मर्यादा और पाशुपात स्त्वन को बताया था वामन पुराण की माने तो इस प्राचीन देव देवेश्वर मंदिर में भक्त प्रहलाद द्वारा पूजा अर्चना का उल्लेख मिलता है लोक प्रिय महाभारत ग्रन्थ में उल्लेख मिलता है कि शिव देवदेवेश्वर की महिमा से एक मृत बालक जीवित हो उठा था तभी से इस सिद्ध शिवलिंग का प्रताप विश्वविख्यात चल रहा है देवदेवेश्वर की सच्ची महिमा एवं उनके प्रताप की एक मध्ययुगीन ऐतिहासिक गाथा भी प्रचलित है शिव पार्वती संबाद की माने तो भगवान शिव के 42 अवतारों में एक अवतार नैमिष की पावन धरती पर हुआ है उन्हीं को देवदेवेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है जिससे सम्पूर्ण नैमिष धाम के रक्षक भी माने जाते है धर्माचार्यो की माने तो आज भी इस शिव मंदिर में मध्य रात्रि के दौरान देव संसद चलती बताई जाती है जिससे मंदिर के पुजारी व्दारा मध्य रात्रि के पहले ही मंदिर के कपाट बन्द कर दिये जाते है अन्यथा मध्य रात्रि को मंदिर के कपाट अपने आप स्वतः बन्द हो जाते है

कमल मंदिर

भारत की राजधानी दिल्ली के नेहरू प्लेस (कालकाजी मंदिर) के पास स्थित एक बहाई  उपासना स्थल है। यह अपने आप में एक अनूठा मंदिर है। यहाँ पर न कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कर्म-कांड किया जाता है, इसके विपरीत यहाँ पर विभिन्न धर्मों से संबंधित विभिन्न पवित्र लेख पढ़े जाते हैं।भारत के लोगों के लिए कमल का फूल पवित्रता तथा शांति का प्रतीक होने के साथ ईश्वर के अवतार का संकेत चिह्न भी है।मंदिर का उद्घाटन २४ दिसंबर १९८६ को हुआ लेकिन आम जनता के लिए यह मंदिर १ जनवरी १९८७ को खोला गया।

EAST
कमल मंदिर

भारत की राजधानी दिल्ली के नेहरू प्लेस (कालकाजी मंदिर) के पास स्थित एक बहाई  उपासना स्थल है। यह अपने आप में एक अनूठा मंदिर है। यहाँ पर न कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कर्म-कांड किया जाता है, इसके विपरीत यहाँ पर विभिन्न धर्मों से संबंधित विभिन्न पवित्र लेख पढ़े जाते हैं।भारत के लोगों के लिए कमल का फूल पवित्रता तथा शांति का प्रतीक होने के साथ ईश्वर के अवतार का संकेत चिह्न भी है।मंदिर का उद्घाटन २४ दिसंबर १९८६ को हुआ लेकिन आम जनता के लिए यह मंदिर १ जनवरी १९८७ को खोला गया।

लक्ष्मी नारायण मंदिर,दिल्ली

लक्ष्मी नारायण मंदिर बिड़ला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर दिल्ली के प्रमुख मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण १९३८ में हुआ था और इसका उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया था। बिड़ला मंदिर अपने यहाँ मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के लिए भी प्रसिद्ध है।

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लक्ष्मी नारायण मंदिर,दिल्ली

लक्ष्मी नारायण मंदिर बिड़ला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर दिल्ली के प्रमुख मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण १९३८ में हुआ था और इसका उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया था। बिड़ला मंदिर अपने यहाँ मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के लिए भी प्रसिद्ध है।

कनक दुर्गा मंदिर

कनक दुर्गा मंदिर आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में स्थित देवी दुर्गा का प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। मंदिर कृष्णा नदी के किनारे, इंद्रकीलाद्री पहाड़ी पर स्थित है। कालिका पुराण, दुर्गा सप्तशती और अन्य वैदिक साहित्य में इंद्रकीलाद्री पर देवी कनक दुर्गा के बारे में उल्लेख किया गया है और उन्होंने त्रिदेव कल्प में देवी को स्वायंभु, (स्वयं प्रकट) बताया है।कनक दुर्गा को देवी शाकम्भरी का रूप भी माना जाता है यहाँ शाकम्भरी उत्सव मनाया जाता है देश मे माँ शाकम्भरी का मुख्य मंदिर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के निकट शिवालिक पर्वत श्रृंखला मे है शाकम्भरी देवी ही कनक दुर्गा के नाम से विजयवाड़ा मे विख्यात है

कनक दुर्गा मंदिर
South
कनक दुर्गा मंदिर

कनक दुर्गा मंदिर आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में स्थित देवी दुर्गा का प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। मंदिर कृष्णा नदी के किनारे, इंद्रकीलाद्री पहाड़ी पर स्थित है। कालिका पुराण, दुर्गा सप्तशती और अन्य वैदिक साहित्य में इंद्रकीलाद्री पर देवी कनक दुर्गा के बारे में उल्लेख किया गया है और उन्होंने त्रिदेव कल्प में देवी को स्वायंभु, (स्वयं प्रकट) बताया है।कनक दुर्गा को देवी शाकम्भरी का रूप भी माना जाता है यहाँ शाकम्भरी उत्सव मनाया जाता है देश मे माँ शाकम्भरी का मुख्य मंदिर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के निकट शिवालिक पर्वत श्रृंखला मे है शाकम्भरी देवी ही कनक दुर्गा के नाम से विजयवाड़ा मे विख्यात है

कनक दुर्गा मंदिर