यह भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां मेंढक की पूजा होती है। कहा जाता है कि इस जगह पर ओयल शैव संप्रदाय का प्रमुख केंद्र था और यहां के शासक भगवान शिव के उपासक थे। इस कस्बे के बीच मंडूक यंत्र पर आधारित प्राचीन शिव मंदिर भी है। आपको बता दें कि यह क्षेत्र 11वीं सदी से 19वीं सदी तक चाहमान शासकों के आधीन रहा था।
यह भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां मेंढक की पूजा होती है। कहा जाता है कि इस जगह पर ओयल शैव संप्रदाय का प्रमुख केंद्र था और यहां के शासक भगवान शिव के उपासक थे। इस कस्बे के बीच मंडूक यंत्र पर आधारित प्राचीन शिव मंदिर भी है। आपको बता दें कि यह क्षेत्र 11वीं सदी से 19वीं सदी तक चाहमान शासकों के आधीन रहा था।
संकटा देवी मंदिर करीब एक हजार साल से अधिक पुराना है। शहर के बीच स्थित यह मंदिर देवी भक्तों की श्रद्धा का केंद्र है। शहर के चार शक्ति पीठों में संकटा देवी मंदिर का प्रमुख स्थान है। इस मंदिर में माता लक्ष्मी की प्रतिमा है। इनके नाम पर ही शहर का नाम भी लक्ष्मीपुर हुआ, जो बाद में लखीमपुर कहलाया।
ऐसी किवदंती है कि इस मंदिर की स्थापना रुकमणी की इच्छा पर पशुपतिनाथ जाते समय महाभारत युद्ध के बाद श्रीकृष्ण ने की थी। उस दौरान श्रीकृष्ण ने जिन चार शक्तिपीठों की स्थापना की, उनमें यह पहला मंदिर है। कभी इस मंदिर के चारों ओर विशाल सरोवर हुआ करता था जो बाद में समाप्त हो गया। मंदिर का जीर्णोद्धार यहां के तत्कालीन महेवा स्टेट के राजाओं ने समय-समय पर कराया है। आज भी यह मंदिर राज परिवार के संरक्षण में है।
संकटा देवी मंदिर करीब एक हजार साल से अधिक पुराना है। शहर के बीच स्थित यह मंदिर देवी भक्तों की श्रद्धा का केंद्र है। शहर के चार शक्ति पीठों में संकटा देवी मंदिर का प्रमुख स्थान है। इस मंदिर में माता लक्ष्मी की प्रतिमा है। इनके नाम पर ही शहर का नाम भी लक्ष्मीपुर हुआ, जो बाद में लखीमपुर कहलाया।
ऐसी किवदंती है कि इस मंदिर की स्थापना रुकमणी की इच्छा पर पशुपतिनाथ जाते समय महाभारत युद्ध के बाद श्रीकृष्ण ने की थी। उस दौरान श्रीकृष्ण ने जिन चार शक्तिपीठों की स्थापना की, उनमें यह पहला मंदिर है। कभी इस मंदिर के चारों ओर विशाल सरोवर हुआ करता था जो बाद में समाप्त हो गया। मंदिर का जीर्णोद्धार यहां के तत्कालीन महेवा स्टेट के राजाओं ने समय-समय पर कराया है। आज भी यह मंदिर राज परिवार के संरक्षण में है।
लिलौटी नाथ मंदिर (लखीमपुर-खीरी) क्यों प्रसिद्ध है?
लिलौटी नाथ मंदिर का आकर्षण मुख्य रूप से इसकी विशालकाय शिवलिंग है जो मंदिर के मध्य में स्थापित है। मंदिर के बाहर भी बहुत सारी मूर्तियां हैं, जिनमें भगवान गणेश, माँ पार्वती और भगवान विष्णु की मूर्तियां शामिल हैं।
लिलौटी नाथ मंदिर का नाम इस मंदिर में विराजमान लिलौटी नाथ भगवान से रखा गया है। मंदिर का निर्माण भू-अभिलेखों के अनुसार सन् 1812 में हुआ था और इसके बाद कुछ बार इसे फिर से बनाया गया था। यह मंदिर स्थानीय लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इसे बड़े आदर से पूजा जाता है। इस मंदिर में विशेष अवसरों पर भक्तों की भीड़ बड़ी होती है, जैसे महाशिवरात्रि, श्रावण मास और नवरात्रि आदि।
लिलौटी नाथ मंदिर (लखीमपुर-खीरी) क्यों प्रसिद्ध है?
लिलौटी नाथ मंदिर का आकर्षण मुख्य रूप से इसकी विशालकाय शिवलिंग है जो मंदिर के मध्य में स्थापित है। मंदिर के बाहर भी बहुत सारी मूर्तियां हैं, जिनमें भगवान गणेश, माँ पार्वती और भगवान विष्णु की मूर्तियां शामिल हैं।
लिलौटी नाथ मंदिर का नाम इस मंदिर में विराजमान लिलौटी नाथ भगवान से रखा गया है। मंदिर का निर्माण भू-अभिलेखों के अनुसार सन् 1812 में हुआ था और इसके बाद कुछ बार इसे फिर से बनाया गया था। यह मंदिर स्थानीय लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इसे बड़े आदर से पूजा जाता है। इस मंदिर में विशेष अवसरों पर भक्तों की भीड़ बड़ी होती है, जैसे महाशिवरात्रि, श्रावण मास और नवरात्रि आदि।
नैमिषारण्य स्थित हनुमानगढ़ी मंदिर को बड़े हनुमान मंदिर के नाम से भी जानते हैं। माना जाता है कि भगवान श्रीराम-रावण युद्ध के समय अहिरावण ने जब राम तथा लक्ष्मण का अपहरण किया। तब हनुमान जी पातालपुरी गए जहां उन्होंने अहिरावण का वध किया और उसके बाद कंधों पर राम और लक्ष्मण को बैठाकर यही से दक्षिण दिशा यानि लंका की ओर प्रस्थान किया। अतः यहां दक्षिणमुखी हनुमान की मूर्ति प्रकट हुई। यहीं पर पाण्डवों ने महाभारत के बाद 12 वर्ष तपस्या की है। जिसे पांड़व किला कहते हैं यह मंदिर दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर के नाम से प्रचलित है, यह अत्यंत दुर्लभ है। यहां पर हनुमान जी की विशालकाय प्रतिमा है। इनका दर्शन श्रद्ालुओं को शांति और सुकून प्रदान करता है। और उसके सभी कष्ट कट जाते हैं।
नैमिषारण्य स्थित हनुमानगढ़ी मंदिर को बड़े हनुमान मंदिर के नाम से भी जानते हैं। माना जाता है कि भगवान श्रीराम-रावण युद्ध के समय अहिरावण ने जब राम तथा लक्ष्मण का अपहरण किया। तब हनुमान जी पातालपुरी गए जहां उन्होंने अहिरावण का वध किया और उसके बाद कंधों पर राम और लक्ष्मण को बैठाकर यही से दक्षिण दिशा यानि लंका की ओर प्रस्थान किया। अतः यहां दक्षिणमुखी हनुमान की मूर्ति प्रकट हुई। यहीं पर पाण्डवों ने महाभारत के बाद 12 वर्ष तपस्या की है। जिसे पांड़व किला कहते हैं यह मंदिर दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर के नाम से प्रचलित है, यह अत्यंत दुर्लभ है। यहां पर हनुमान जी की विशालकाय प्रतिमा है। इनका दर्शन श्रद्ालुओं को शांति और सुकून प्रदान करता है। और उसके सभी कष्ट कट जाते हैं।
सोमनाथ मन्दिर भूमण्डल में दक्षिण एशिया स्थित भारतवर्ष के पश्चिमी छोर पर गुजरात नामक प्रदेश स्थित, अत्यन्त प्राचीन व ऐतिहासिक शिव मन्दिर का नाम है। यह भारतीय इतिहास तथा हिन्दुओं के चुनिन्दा और महत्वपूर्ण मन्दिरों में से एक है। इसे आज भी भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना व जाना जाता है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बन्दरगाह में स्थित इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में स्पष्ट है।
यह मन्दिर हिन्दू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। अत्यन्त वैभवशाली होने के कारण इतिहास में कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया। वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरम्भ भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और पहली दिसम्बर 1955 को भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। सोमनाथ मन्दिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मन्दिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घण्टे का साउण्ड एण्ड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मन्दिर के इतिहास का बड़ा ही सुन्दर सचित्र वर्णन किया जाता है। लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्त्व बढ़ गया।
सोमनाथ मन्दिर भूमण्डल में दक्षिण एशिया स्थित भारतवर्ष के पश्चिमी छोर पर गुजरात नामक प्रदेश स्थित, अत्यन्त प्राचीन व ऐतिहासिक शिव मन्दिर का नाम है। यह भारतीय इतिहास तथा हिन्दुओं के चुनिन्दा और महत्वपूर्ण मन्दिरों में से एक है। इसे आज भी भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना व जाना जाता है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बन्दरगाह में स्थित इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में स्पष्ट है।
यह मन्दिर हिन्दू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। अत्यन्त वैभवशाली होने के कारण इतिहास में कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया। वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरम्भ भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और पहली दिसम्बर 1955 को भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। सोमनाथ मन्दिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मन्दिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घण्टे का साउण्ड एण्ड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मन्दिर के इतिहास का बड़ा ही सुन्दर सचित्र वर्णन किया जाता है। लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्त्व बढ़ गया।