कामाख्या मंदिर, गुवाहाटी, असम में स्थित है और यह देवी कामाख्या को समर्पित एक प्रमुख शक्ति पीठ है।
🕉️ कामाख्या मंदिर के दर्शन और पूजा के समय:
प्रातःकालीन समय
दोपहर का समय
संध्याकालीन समय
5:30 AM:पिठस्थान का स्नान।
6:00 AM:नित्य पूजा।
8:00 AM:मंदिर के द्वार भक्तों के लिए खुलते हैं।
1:00 PM:मंदिर के द्वार बंद होते हैं; देवी को भोग अर्पण किया जाता है और प्रसाद का वितरण होता है।
2:30 PM:मंदिर के द्वार पुनः भक्तों के लिए खुलते हैं।
5:15 PM:मंदिर के द्वार रात्रि के लिए बंद हो जाते हैं।
7:30 PM:देवी की आरती होती है।
प्रवेश और विशेष दर्शन:
सामान्य प्रवेश:निःशुल्क।
वीआईपी दर्शन पास:₹501 प्रति व्यक्ति।
रक्षा कर्मियों के लिए:₹50 प्रति व्यक्ति।
मंदिर का स्थान:
कामाख्या मंदिर, नीलाचल हिल, गुवाहाटी, असम में स्थित है
🕉️ कामाख्या मंदिर का निर्माण और इतिहास:
प्रारंभिक काल:ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार, कामाख्या मंदिर की उत्पत्ति 4वीं-5वीं शताब्दी ईस्वी में हुई थी।
पुनर्निर्माण:16वीं शताब्दी में, कोच वंश के राजा नरा नारायण (1540–1587 ई.) ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1555 ई. में प्रारंभ किया और 1565 ई. में इसे पूर्ण किया।
वास्तुकला:वर्तमान मंदिर की वास्तुकला 1565 ई. में पुनर्निर्माण के दौरान विकसित हुई, जिसमें 11वीं-12वीं शताब्दी के पत्थर के मंदिर के अवशेषों का उपयोग किया गया।
📜 पौराणिक मान्यता:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह मंदिर उस स्थान पर स्थित है जहाँ देवी सती का योनि अंग गिरा था, और यह स्थान 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
इस प्रकार, कामाख्या मंदिर का इतिहास प्राचीन काल से लेकर मध्यकालीन पुनर्निर्माण तक विस्तृत है, जो इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल बनाता है।
अंबुबाची मेला
कामाख्या मंदिर, असम में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला अंबुबाची मेला एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है, जो देवी कामाख्या की वार्षिक रजस्वला अवधि का प्रतीक है।
🕉️ मेला का महत्व और परंपराएँ:
तीन दिवसीय मंदिर बंद:मंदिर 22 जून की शाम से 24 जून तक बंद रहता है, जो देवी की रजस्वला अवधि का प्रतीक है।
पुनः उद्घाटन:25 जून को विशेष पूजा और शुद्धिकरण अनुष्ठानों के बाद मंदिर पुनः भक्तों के लिए खुलता है।
प्रसाद वितरण:मेला के दौरान “अंगोदक” (पवित्र जल) और “अंगवस्त्र” (देवी को अर्पित लाल वस्त्र) के रूप में प्रसाद वितरित किया जाता है।
🌟 आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव:
अंबुबाची मेला के दौरान, देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु, साधु-संत, और तांत्रिक साधक कामाख्या मंदिर में एकत्रित होते हैं।यह मेला देवी शक्ति की रचनात्मक और प्रजनन शक्ति का उत्सव है, जो स्त्रीत्व और मातृत्व का सम्मान करता है।
🛕 यात्रा और ठहरने की व्यवस्था:
कैसे पहुँचें:गुवाहाटी रेलवे स्टेशन और लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा मंदिर से क्रमशः लगभग 12 और 20 किमी की दूरी पर स्थित हैं।
आवास:मेला के दौरान भारी भीड़ को देखते हुए, गुवाहाटी शहर में होटल, धर्मशालाएँ, और अस्थायी शिविरों की अग्रिम बुकिंग की सलाह दी जाती है।
यदि आप अंबुबाची मेला 2025 में भाग लेने की योजना बना रहे हैं, तो यह एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव होगा, जो देवी कामाख्या की दिव्य ऊर्जा और भारतीय सांस्कृतिक विरासत का साक्षात्कार कराएगा।
कामाख्या मंदिर, असम में कई प्रमुख पर्व और उत्सव मनाए जाते हैं, जो देवी शक्ति की विभिन्न रूपों की पूजा और तांत्रिक परंपराओं से जुड़े होते हैं।
1. अंबुबाची मेला (Ambubachi Mela)
समय: हर साल जून महीने में (संक्रांति से संबंधित)
महत्व: यह देवी के रजस्वला (menstruation) होने का प्रतीक पर्व है। मंदिर 3 दिन बंद रहता है और चौथे दिन विशेष पूजा के साथ खुलता है।
विशेषता: लाखों श्रद्धालु और तांत्रिक साधक जुटते हैं।
2. मनसा पूजा
समय: सावन मास (जुलाई-अगस्त)
महत्व: नाग देवी मनसा को समर्पित, जो संतान और नागों से रक्षा की देवी मानी जाती हैं।
विशेष पूजा: ग्रामीण भक्त विशेष रूप से भाग लेते हैं।
3. दुर्गा पूजा और नवरात्रि
समय: आश्विन मास (सितंबर-अक्टूबर)
महत्व: देवी दुर्गा के 9 रूपों की आराधना।
मंदिर सजावट: भव्य होती है, विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।
4. वासंतिक नवरात्रि
समय: चैत्र मास (मार्च-अप्रैल)
महत्व: वसंत ऋतु की शुरुआत में देवी शक्ति की पूजा।
5. दीपावली और काली पूजा
समय: कार्तिक अमावस्या (अक्टूबर-नवंबर)
महत्व: देवी काली की तांत्रिक रूप में आराधना, विशेष रूप से तांत्रिक संप्रदायों द्वारा।
अनुष्ठान: मध्यरात्रि में विशेष काली पूजन।
6. कामाख्या देवी जन्मोत्सव
समय: कुछ भक्तगण श्रावण या भाद्रपद में मानते हैं।
महत्व: देवी के प्रकट होने का उत्सव।
🛕 कामाख्या मंदिर पहुँचने के साधन:
1.✈️ हवाई मार्ग (By Air)
निकटतम हवाई अड्डा: लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, गुवाहाटी (लगभग 20 किमी दूरी)
एयरपोर्ट से टैक्सी या कैब के जरिए मंदिर तक पहुँचा जा सकता है (लगभग 45 मिनट का सफर)
2.🚆 रेल मार्ग (By Train)
निकटतम रेलवे स्टेशन: गुवाहाटी रेलवे स्टेशन (लगभग 7-8 किमी दूरी)
स्टेशन से ऑटो, टैक्सी या स्थानीय बस के माध्यम से मंदिर पहुँचा जा सकता है
3.🚌 सड़क मार्ग (By Road)
राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़ा: गुवाहाटी असम और पूर्वोत्तर भारत के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा है
बस सेवा: गुवाहाटी ISBT (Inter-State Bus Terminal) से स्थानीय बस सेवा उपलब्ध है
कैब/ऑटो: निजी टैक्सी, ओला/उबर, ऑटो रिक्शा मंदिर तक पहुँचाने के लिए आसानी से मिल जाते हैं
🚶♂️ नीलाचल पर्वत चढ़ाई (Last Stretch):
मंदिर पर्वत की ऊँचाई पर स्थित है।
1: सीढ़ियाँ (लगभग 800+ सीढ़ियाँ) – धार्मिक भावना से चलकर जाना चाहें तो
2: वाहन मार्ग – टैक्सी/ऑटो से सीधा मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार तक
📝 यात्रा सुझाव
सुबह जल्दी जाएँ ताकि भीड़ कम मिले।
त्योहारों या अंबुबाची मेला के दौरान भीड़ अत्यधिक होती है — होटल और टैक्सी पहले से बुक करें।
श्रद्धालु VIP दर्शन पास भी मंदिर परिसर में प्राप्त कर सकते हैं।
अमरनाथ गुफा जम्मू और कश्मीर राज्य में स्थित एक पवित्र हिंदू तीर्थस्थल है, जो शिव भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह गुफा समुद्र तल से लगभग 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यहां तक पहुंचने के लिए एक कठिन यात्रा की आवश्यकता होती है।
धार्मिक महत्व
अमरनाथ गुफा में भगवान शिव का एक प्राकृतिक शिवलिंग है, जो बर्फ से निर्मित होता है। इसे अमरनाथ का हिमलिंग कहा जाता है। इस पवित्र शिवलिंग का निर्माण प्राकृतिक रूप से हर साल होता है और यह भक्तों के लिए अद्भुत और दिव्य अनुभव प्रदान करता है।
यात्रा का मार्ग
अमरनाथ गुफा की यात्रा दो प्रमुख मार्गों से की जा सकती है: 1. पहलगाम मार्ग: यह पारंपरिक और सबसे लोकप्रिय मार्ग है। यह लगभग 36 किलोमीटर लंबा है और इसमें पांच दिन का समय लगता है। 2. बालटाल मार्ग: यह मार्ग छोटा और सीधा है, जिसकी लंबाई लगभग 14 किलोमीटर है, लेकिन यह अधिक कठिन और चुनौतीपूर्ण है।
यात्रा का समय
अमरनाथ यात्रा का समय जून से अगस्त के बीच होता है। यह अवधि शावन मास के दौरान होती है, जब हजारों भक्त गुफा तक पहुंचते हैं। यात्रा का आयोजन श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड द्वारा किया जाता है और सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाते हैं।
मान्यता और कथा
अमरनाथ गुफा से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, भगवान शिव ने माता पार्वती को यहां अमरकथा सुनाई थी। इस कथा को सुनने के लिए कोई और जीवित न रहे, इसलिए उन्होंने अपने चारों ओर आग जलाकर सभी को भस्म कर दिया। हालांकि, एक कबूतर के जोड़े ने यह कथा सुन ली और वे अमर हो गए। आज भी कई भक्त गुफा में उन कबूतरों को देखने का दावा करते हैं।
सुरक्षा और सुविधा
भक्तों की सुरक्षा के लिए यात्रा के दौरान विभिन्न कैंप और चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। यात्रा मार्ग पर भोजन, पानी और अन्य आवश्यक वस्तुएं भी उपलब्ध होती हैं।
अमरनाथ गुफा की यात्रा एक अद्वितीय धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव है, जो श्रद्धालुओं के मन में गहरी आस्था और भक्ति का संचार करता है। इस पवित्र तीर्थस्थल की यात्रा करने वाले भक्तों के लिए यह एक जीवनपर्यंत यादगार अनुभव होता है।
अमरनाथ गुफा भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है क्यों कि यहीं पर भगवान शिव ने माँ पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था।
यहाँ की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखों लोग यहां आते हैं। गुफा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूँदें जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूँदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है।
एक चरवाहे द्वारा जंगल में घास काटने के दौरान उसकी खुरपी लगने से शिवलिंग से खून निकलने लगा । चरवाहा घबराकर घर भाग आया। तब भगवान ने उसके सपने में आकर उसे उस स्थान की सफाई करने को कहा । चरवाहे ने इस स्थान की सफाई की तो उसे शिवलिंग दिखाई दी। क्षेत्र के लोग प्रतिदिन शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने लगे। शिवलिंग के आसपास लोगों ने चबूतरे का निर्माण करवा दिया। बुजुर्गों के मुताबिक इस स्थान पर आने वाले लोगों की मुरादें पूरी होने लगीं। धीरे- धीरे आसपास के क्षेत्र में यह स्थान सिद्धेश्वर महादेव मंदिर के नाम से विख्यात हो गया। बताते हैं कि कुछ लोगों ने शिवलिंग को ऊपर उठाने लिए कई मीटर तक जमीन खोदी लेकिन शिवलिंग का अंत नहीं मिला। आज भी शिवलिंग जमीन के काफी नीचे तक है।
Bageshwar Dham Sarkar मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है। इस धाम में रामभक्त हनुमान जी अपने श्री बागेश्वर बालाजी महाराज के स्वरुप में वास करते हैं और भक्तों का भला करते हैं। इस मंदिर / धाम में आने के लिए सभी भक्तगणों को अपनी अर्जी लगानी होती है। अर्जी स्वीकार होने पर उन्हें निःशुल्क टोकन मिलता है।
गोमती राजघाट नैमिषारण्य हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। जो उत्तर प्रदेश में लखनऊ से लगभग 80 किमी दूर सीतापुर जिले में है प्रतिदिन गोमतीराजघाट नैमिषारण्य,सीतापुर से माता गोमती के दर्शन व पूजा आरती का लाभ प्राप्त करे।।श्री अष्टांग कवच आरती की तरफ से सभी भक्तगणों को मां आदिगंगा गोमती का हार्दिक आशीर्वाद ।।