Dharm Nagri Bharat (Temples in India)
उमा और आनंद का दिव्य संगम – उमानंद मंदिर

भगवान शिव और देवी पार्वती के प्रेम और आनंद का प्रतीक

🕒 उमानंदा मंदिर खुलने का समय (Darshan Timing):

समय विवरण
सुबह 7:00 AM
शाम 5:00 PM (दर्शन बंद)
हर दिन मंदिर सप्ताह के सभी दिन खुला रहता है (सोमवार को विशेष भीड़ होती है)

🔔 उमानंदा मंदिर में आरती का समय (Aarti Timing):

आरती समय
प्रातः आरती लगभग 7:30 AM के आसपास
सायं आरती लगभग 4:30 PM से 5:00 PM तक

🕒 मंदिर दर्शन का समय:

मंदिर प्रातः 7:00 AM से 5:00 PM तक खुला रहता है।

📍स्थान विवरण

  • 🏛️ मंदिर का नाम: उमानंदा मंदिर

  • 📌 स्थान: उमानंदा द्वीप, ब्रह्मपुत्र नदी

  • 🏙️ शहर: गुवाहाटी

  • 🌍 राज्य: असम (Assam), भारत

  • 🚩 निकटतम घाट

  • Fancy Bazaar Ferry Ghat

  • Uzan Bazaar Ferry Ghat

  • उमानंदा मंदिर, असम के गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी के बीच स्थित उमानंदा द्वीप (Peacock Island) पर स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।

उमानंदा मंदिर में किसकी पूजा होती है

इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा होती है।
यहाँ भगवान शिव को उमा और आनंद का दिव्य संगम – उमानंद मंदिर
भगवान शिव और देवी पार्वती के प्रेम और आनंद का प्रतीक

विशेषताएँ

  • यह द्वीप ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में स्थित है और नाव द्वारा पहुँचा जाता है।

  • यह भारत के सबसे छोटे नदी द्वीपों में से एक है।

  • यहाँ शिवरात्रि पर विशेष पूजा और भव्य उत्सव मनाया जाता है।

📜 मंदिर का इतिहास

📜 मंदिर का इतिहास

  • निर्माण वर्ष: 1694 ईस्वी

  • निर्माता: बर्फुकन गर्घगन्या हैंडिके (राजा गदाधर सिंह के आदेश पर)

  • स्थान: भस्मकुटा या भस्माचल पहाड़ी, उमानंदा द्वीप, ब्रह्मपुत्र नदी, गुवाहाटी

1897 में आए एक विनाशकारी भूकंप में मूल मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था, जिसे बाद में एक स्थानीय व्यापारी द्वारा पुनर्निर्मित किया गया।

🕉️ धार्मिक महत्व

मंदिर में भगवान शिव की पूजा “उमानंदा” नाम से की जाती है, जिसका अर्थ है “उमा (पार्वती) को आनंद देने वाले शिव”। यह स्थान “भस्माचल” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि मान्यता है कि यहां शिव ने कामदेव को भस्म किया था।

Shakti Peeth Kamakhya: A Journey to the Abode of Goddess

कामाख्या मंदिर, गुवाहाटी, असम में स्थित है और यह देवी कामाख्या को समर्पित एक प्रमुख शक्ति पीठ है।

🕉️ कामाख्या मंदिर के दर्शन और पूजा के समय:

प्रातःकालीन समय

दोपहर का समय

संध्याकालीन समय

  • 5:30 AM: पिठस्थान का स्नान।

  • 6:00 AM: नित्य पूजा।

  • 8:00 AM: मंदिर के द्वार भक्तों के लिए खुलते हैं।

  • 1:00 PM: मंदिर के द्वार बंद होते हैं; देवी को भोग अर्पण किया जाता है और प्रसाद का वितरण होता है।

  • 2:30 PM: मंदिर के द्वार पुनः भक्तों के लिए खुलते हैं।

  • 5:15 PM: मंदिर के द्वार रात्रि के लिए बंद हो जाते हैं।

  • 7:30 PM: देवी की आरती होती है। 

प्रवेश और विशेष दर्शन:

  • सामान्य प्रवेश: निःशुल्क।

  • वीआईपी दर्शन पास: ₹501 प्रति व्यक्ति।

  • रक्षा कर्मियों के लिए: ₹50 प्रति व्यक्ति।

मंदिर का स्थान:

कामाख्या मंदिर, नीलाचल हिल, गुवाहाटी, असम में स्थित है

🕉️ कामाख्या मंदिर का निर्माण और इतिहास:

  • प्रारंभिक काल: ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार, कामाख्या मंदिर की उत्पत्ति 4वीं-5वीं शताब्दी ईस्वी में हुई थी।

  • पुनर्निर्माण: 16वीं शताब्दी में, कोच वंश के राजा नरा नारायण (1540–1587 ई.) ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1555 ई. में प्रारंभ किया और 1565 ई. में इसे पूर्ण किया।

  • वास्तुकला: वर्तमान मंदिर की वास्तुकला 1565 ई. में पुनर्निर्माण के दौरान विकसित हुई, जिसमें 11वीं-12वीं शताब्दी के पत्थर के मंदिर के अवशेषों का उपयोग किया गया।

📜 पौराणिक मान्यता:

पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह मंदिर उस स्थान पर स्थित है जहाँ देवी सती का योनि अंग गिरा था, और यह स्थान 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।

इस प्रकार, कामाख्या मंदिर का इतिहास प्राचीन काल से लेकर मध्यकालीन पुनर्निर्माण तक विस्तृत है, जो इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल बनाता है।

अंबुबाची मेला

कामाख्या मंदिर, असम में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला अंबुबाची मेला एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है, जो देवी कामाख्या की वार्षिक रजस्वला अवधि का प्रतीक है।

🕉️ मेला का महत्व और परंपराएँ:

  • तीन दिवसीय मंदिर बंद: मंदिर 22 जून की शाम से 24 जून तक बंद रहता है, जो देवी की रजस्वला अवधि का प्रतीक है।

  • पुनः उद्घाटन: 25 जून को विशेष पूजा और शुद्धिकरण अनुष्ठानों के बाद मंदिर पुनः भक्तों के लिए खुलता है।

  • प्रसाद वितरण: मेला के दौरान “अंगोदक” (पवित्र जल) और “अंगवस्त्र” (देवी को अर्पित लाल वस्त्र) के रूप में प्रसाद वितरित किया जाता है।

🌟 आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव:

अंबुबाची मेला के दौरान, देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु, साधु-संत, और तांत्रिक साधक कामाख्या मंदिर में एकत्रित होते हैं। यह मेला देवी शक्ति की रचनात्मक और प्रजनन शक्ति का उत्सव है, जो स्त्रीत्व और मातृत्व का सम्मान करता है।

🛕 यात्रा और ठहरने की व्यवस्था:

  • कैसे पहुँचें: गुवाहाटी रेलवे स्टेशन और लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा मंदिर से क्रमशः लगभग 12 और 20 किमी की दूरी पर स्थित हैं।

  • आवास: मेला के दौरान भारी भीड़ को देखते हुए, गुवाहाटी शहर में होटल, धर्मशालाएँ, और अस्थायी शिविरों की अग्रिम बुकिंग की सलाह दी जाती है।

यदि आप अंबुबाची मेला 2025 में भाग लेने की योजना बना रहे हैं, तो यह एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव होगा, जो देवी कामाख्या की दिव्य ऊर्जा और भारतीय सांस्कृतिक विरासत का साक्षात्कार कराएगा।

कामाख्या मंदिर, असम में कई प्रमुख पर्व और उत्सव मनाए जाते हैं, जो देवी शक्ति की विभिन्न रूपों की पूजा और तांत्रिक परंपराओं से जुड़े होते हैं। 

1. अंबुबाची मेला (Ambubachi Mela)

  • समय: हर साल जून महीने में (संक्रांति से संबंधित)

  • महत्व: यह देवी के रजस्वला (menstruation) होने का प्रतीक पर्व है। मंदिर 3 दिन बंद रहता है और चौथे दिन विशेष पूजा के साथ खुलता है।

  • विशेषता: लाखों श्रद्धालु और तांत्रिक साधक जुटते हैं।

2. मनसा पूजा

  • समय: सावन मास (जुलाई-अगस्त)

  • महत्व: नाग देवी मनसा को समर्पित, जो संतान और नागों से रक्षा की देवी मानी जाती हैं।

  • विशेष पूजा: ग्रामीण भक्त विशेष रूप से भाग लेते हैं।

3. दुर्गा पूजा और नवरात्रि

  • समय: आश्विन मास (सितंबर-अक्टूबर)

  • महत्व: देवी दुर्गा के 9 रूपों की आराधना।

  • मंदिर सजावट: भव्य होती है, विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।

4. वासंतिक नवरात्रि

  • समय: चैत्र मास (मार्च-अप्रैल)

  • महत्व: वसंत ऋतु की शुरुआत में देवी शक्ति की पूजा।

5. दीपावली और काली पूजा

  • समय: कार्तिक अमावस्या (अक्टूबर-नवंबर)

  • महत्व: देवी काली की तांत्रिक रूप में आराधना, विशेष रूप से तांत्रिक संप्रदायों द्वारा।

  • अनुष्ठान: मध्यरात्रि में विशेष काली पूजन।

6. कामाख्या देवी जन्मोत्सव

  • समय: कुछ भक्तगण श्रावण या भाद्रपद में मानते हैं।

  • महत्व: देवी के प्रकट होने का उत्सव।  

🛕 कामाख्या मंदिर पहुँचने के साधन:

1.✈️ हवाई मार्ग (By Air)


निकटतम हवाई अड्डा: लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, गुवाहाटी (लगभग 20 किमी दूरी)

एयरपोर्ट से टैक्सी या कैब के जरिए मंदिर तक पहुँचा जा सकता है (लगभग 45 मिनट का सफर)

2.🚆 रेल मार्ग (By Train)

निकटतम रेलवे स्टेशन: गुवाहाटी रेलवे स्टेशन (लगभग 7-8 किमी दूरी) 

स्टेशन से ऑटो, टैक्सी या स्थानीय बस के माध्यम से मंदिर पहुँचा जा सकता है 

3.🚌 सड़क मार्ग (By Road)

राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़ा: गुवाहाटी असम और पूर्वोत्तर भारत के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा है 

बस सेवा: गुवाहाटी ISBT (Inter-State Bus Terminal) से स्थानीय बस सेवा उपलब्ध है 

कैब/ऑटो: निजी टैक्सी, ओला/उबर, ऑटो रिक्शा मंदिर तक पहुँचाने के लिए आसानी से मिल जाते हैं 

🚶‍♂️ नीलाचल पर्वत चढ़ाई (Last Stretch):

मंदिर पर्वत की ऊँचाई पर स्थित है। 

1: सीढ़ियाँ (लगभग 800+ सीढ़ियाँ) – धार्मिक भावना से चलकर जाना चाहें तो

 2: वाहन मार्ग – टैक्सी/ऑटो से सीधा मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार तक

 

📝 यात्रा सुझाव

सुबह जल्दी जाएँ ताकि भीड़ कम मिले।

त्योहारों या अंबुबाची मेला के दौरान भीड़ अत्यधिक होती है — होटल और टैक्सी पहले से बुक करें।

श्रद्धालु VIP दर्शन पास भी मंदिर परिसर में प्राप्त कर सकते हैं।

बैद्यनाथ धाम
Devghar

बाबा वैद्यनाथ धाम, झारखंड

 

बाबा वैद्यनाथ धाम, जिसे बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है, झारखंड राज्य के देवघर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थस्थल है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, और इसे भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों में गिना जाता है। 

 

इतिहास और महत्व:

बाबा वैद्यनाथ धाम का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व अत्यंत पुराना है। यह कहा जाता है कि रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यहां तपस्या की थी और शिवलिंग की स्थापना की थी। इसी कारण से यह स्थान शिव भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। 

 

मंदिर की संरचना:

मंदिर का वास्तुशिल्प अद्वितीय है और यह भारतीय शिल्पकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर परिसर में मुख्य शिवलिंग के अलावा कई अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं, जिनमें माता पार्वती, गणेश, कार्तिकेय आदि शामिल हैं। मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार भव्य है और यहां पर दर्शनार्थियों की भीड़ हमेशा बनी रहती है।

 

**पूजा और अनुष्ठान**:

बाबा वैद्यनाथ धाम में हर दिन विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं। श्रावण मास के दौरान यहां विशेष रूप से कांवड़ यात्रा का आयोजन होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु गंगा जल लेकर पैदल यात्रा करते हैं और भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। इस दौरान मंदिर परिसर में भक्तों की भारी भीड़ देखी जाती है।

 

**त्यौहार और मेलों का आयोजन**:

श्रावण मास के अलावा महाशिवरात्रि, मकर संक्रांति और रामनवमी जैसे त्योहारों पर भी यहां विशेष आयोजन होते हैं। इन अवसरों पर मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है और भक्तों के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है। 

 

**आवागमन और ठहरने की व्यवस्था**:

देवघर अच्छी तरह से सड़क, रेल और वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है। निकटतम रेलवे स्टेशन देवघर और निकटतम हवाई अड्डा रांची है। मंदिर के निकट ही कई धर्मशालाएँ और होटल हैं, जहां श्रद्धालु ठहर सकते हैं।

 

**पर्यटक आकर्षण**:

मंदिर के अलावा, देवघर में कई अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं, जैसे नंदन पहाड़, सिविल शिवगंगा, त्रिकुट पहाड़ आदि। ये स्थल प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर हैं और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

 

**समाजसेवा और चिकित्सा सेवाएं**:

बाबा वैद्यनाथ धाम मंदिर ट्रस्ट समाजसेवा और चिकित्सा सेवाओं में भी सक्रिय है। यहां पर कई मुफ्त चिकित्सा शिविरों का आयोजन किया जाता है और गरीबों की सहायता के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जाती हैं।

 

**सुरक्षा और व्यवस्था**:

मंदिर परिसर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाते हैं और प्रशासन द्वारा श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए हर संभव प्रयास किए जाते हैं। यहां पर 24 घंटे सुरक्षा व्यवस्था रहती है और हर साल लाखों भक्त यहां बिना किसी परेशानी के दर्शन करने आते हैं।

 

बाबा वैद्यनाथ धाम न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्थान भक्तों के लिए आध्यात्मिक शांति और आनंद का स्रोत भी है। यहां आकर भक्त अपने जीवन में शांति और सुख की प्राप्ति करते हैं।

मुक्‍तेश्‍वर मन्दिर

मुक्तेश्वर मन्दिर भुवनेश्वर के ख़ुर्द ज़िले में स्थित है। मुक्तेश्वर मन्दिर दो मन्दिरों का समूह है: परमेश्वर मन्दिर तथा मुक्तेश्वर मन्दिर। मुक्तेश्वर मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है और यह मन्दिर एक छोटी पहाड़ी पर बना हुआ है इस मन्दिर तक पहुंचने के लिए लगभग 100 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। यहाँ भगवान शिव के साथ ब्रह्मा, विष्णु, पार्वती, हनुमान और नंदी जी भी विराजमान हैं। मन्दिर के बाहर लंगूरों का जमावड़ा लगा रहता है।

मुक्‍तेश्‍वर मन्दिर
Kanak Bhawan, Ayodhya

कनक भवन अयोध्या में राम जन्म भूमि, रामकोट के उत्तर-पूर्व में है। कनक भवन अयोध्या के बेहतरीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि यह भवन भगवान श्री राम जी से विवाह के तुरंत बाद महारानीकैकेयी जी द्वारा देवी सीता जी को उपहार में दिया गया था। यह देवी सीता और भगवान राम का निजी महल है।