Dharm Nagri Bharat (Temples in India)
लिलौटी नाथ मंदिर लखीमपुर-खीरी

लिलौटी नाथ मंदिर (लखीमपुर-खीरी) क्यों प्रसिद्ध है?​

लिलौटी नाथ मंदिर का आकर्षण मुख्य रूप से इसकी विशालकाय शिवलिंग है जो मंदिर के मध्य में स्थापित है। मंदिर के बाहर भी बहुत सारी मूर्तियां हैं, जिनमें भगवान गणेश, माँ पार्वती और भगवान विष्णु की मूर्तियां शामिल हैं।

लिलौटी नाथ मंदिर लखीमपुर-खीरी

लिलौटी नाथ मंदिर का नाम इस मंदिर में विराजमान लिलौटी नाथ भगवान से रखा गया है। मंदिर का निर्माण भू-अभिलेखों के अनुसार सन् 1812 में हुआ था और इसके बाद कुछ बार इसे फिर से बनाया गया था। यह मंदिर स्थानीय लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इसे बड़े आदर से पूजा जाता है। इस मंदिर में विशेष अवसरों पर भक्तों की भीड़ बड़ी होती है, जैसे महाशिवरात्रि, श्रावण मास और नवरात्रि आदि।

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लिलौटी नाथ मंदिर लखीमपुर-खीरी

लिलौटी नाथ मंदिर (लखीमपुर-खीरी) क्यों प्रसिद्ध है?​

लिलौटी नाथ मंदिर का आकर्षण मुख्य रूप से इसकी विशालकाय शिवलिंग है जो मंदिर के मध्य में स्थापित है। मंदिर के बाहर भी बहुत सारी मूर्तियां हैं, जिनमें भगवान गणेश, माँ पार्वती और भगवान विष्णु की मूर्तियां शामिल हैं।

लिलौटी नाथ मंदिर लखीमपुर-खीरी

लिलौटी नाथ मंदिर का नाम इस मंदिर में विराजमान लिलौटी नाथ भगवान से रखा गया है। मंदिर का निर्माण भू-अभिलेखों के अनुसार सन् 1812 में हुआ था और इसके बाद कुछ बार इसे फिर से बनाया गया था। यह मंदिर स्थानीय लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इसे बड़े आदर से पूजा जाता है। इस मंदिर में विशेष अवसरों पर भक्तों की भीड़ बड़ी होती है, जैसे महाशिवरात्रि, श्रावण मास और नवरात्रि आदि।

हनुमान गढ़ी नैमिषारण्य

नैमिषारण्य स्थित हनुमानगढ़ी मंदिर को बड़े हनुमान मंदिर के नाम से भी जानते हैं। माना जाता है कि भगवान श्रीराम-रावण युद्ध के समय अहिरावण ने जब राम तथा लक्ष्मण का अपहरण किया। तब हनुमान जी पातालपुरी गए जहां उन्होंने अहिरावण का वध किया और उसके बाद कंधों पर राम और लक्ष्मण को बैठाकर यही से दक्षिण दिशा यानि लंका की ओर प्रस्थान किया। अतः यहां दक्षिणमुखी हनुमान की मूर्ति प्रकट हुई। यहीं पर पाण्डवों ने महाभारत के बाद 12 वर्ष तपस्या की है। जिसे पांड़व किला कहते हैं यह मंदिर दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर के नाम से प्रचलित है, यह अत्यंत दुर्लभ है। यहां पर हनुमान जी की विशालकाय प्रतिमा है। इनका दर्शन श्रद्ालुओं को शांति और सुकून प्रदान करता है। और उसके सभी कष्ट कट जाते हैं।

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हनुमान गढ़ी नैमिषारण्य

नैमिषारण्य स्थित हनुमानगढ़ी मंदिर को बड़े हनुमान मंदिर के नाम से भी जानते हैं। माना जाता है कि भगवान श्रीराम-रावण युद्ध के समय अहिरावण ने जब राम तथा लक्ष्मण का अपहरण किया। तब हनुमान जी पातालपुरी गए जहां उन्होंने अहिरावण का वध किया और उसके बाद कंधों पर राम और लक्ष्मण को बैठाकर यही से दक्षिण दिशा यानि लंका की ओर प्रस्थान किया। अतः यहां दक्षिणमुखी हनुमान की मूर्ति प्रकट हुई। यहीं पर पाण्डवों ने महाभारत के बाद 12 वर्ष तपस्या की है। जिसे पांड़व किला कहते हैं यह मंदिर दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर के नाम से प्रचलित है, यह अत्यंत दुर्लभ है। यहां पर हनुमान जी की विशालकाय प्रतिमा है। इनका दर्शन श्रद्ालुओं को शांति और सुकून प्रदान करता है। और उसके सभी कष्ट कट जाते हैं।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर

सोमनाथ मन्दिर भूमण्डल में दक्षिण एशिया स्थित भारतवर्ष के पश्चिमी छोर पर गुजरात नामक प्रदेश स्थित, अत्यन्त प्राचीन व ऐतिहासिक शिव मन्दिर का नाम है। यह भारतीय इतिहास तथा हिन्दुओं के चुनिन्दा और महत्वपूर्ण मन्दिरों में से एक है। इसे आज भी भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना व जाना जाता है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बन्दरगाह में स्थित इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में स्पष्ट है।

यह मन्दिर हिन्दू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। अत्यन्त वैभवशाली होने के कारण इतिहास में कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया। वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरम्भ भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और पहली दिसम्बर 1955 को भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। सोमनाथ मन्दिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मन्दिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घण्टे का साउण्ड एण्ड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मन्दिर के इतिहास का बड़ा ही सुन्दर सचित्र वर्णन किया जाता है। लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्त्व बढ़ गया।

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सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर

सोमनाथ मन्दिर भूमण्डल में दक्षिण एशिया स्थित भारतवर्ष के पश्चिमी छोर पर गुजरात नामक प्रदेश स्थित, अत्यन्त प्राचीन व ऐतिहासिक शिव मन्दिर का नाम है। यह भारतीय इतिहास तथा हिन्दुओं के चुनिन्दा और महत्वपूर्ण मन्दिरों में से एक है। इसे आज भी भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना व जाना जाता है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बन्दरगाह में स्थित इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में स्पष्ट है।

यह मन्दिर हिन्दू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। अत्यन्त वैभवशाली होने के कारण इतिहास में कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया। वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरम्भ भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और पहली दिसम्बर 1955 को भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। सोमनाथ मन्दिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मन्दिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घण्टे का साउण्ड एण्ड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मन्दिर के इतिहास का बड़ा ही सुन्दर सचित्र वर्णन किया जाता है। लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्त्व बढ़ गया।

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काशी विश्वनाथ मन्दिर

काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर पिछले कई हजार वर्षों से वाराणसी में स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्‍ट स्‍थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ, गोस्‍वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ है। यहीं पर सन्त एकनाथजी ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पूरा किया और काशीनरेश तथा विद्वतजनों द्वारा उस ग्रन्थ की हाथी पर धूमधाम से शोभायात्रा निकाली गयी। महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा ढोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दृढ़ संकल्प से काशी कारीडोर के अन्तर्गत काशी विश्वनाथ जी के मंदिर का विस्तार किया गया जो अद्भुत अकल्पनीय साथ ही आश्चर्य जनित भी है प्रत्येक काशी वासियों ने ऐसी परिकल्पना भी नहीं की होगी |माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने 8 मार्च 2019 को काशी विश्वनाथ कारीडोर का शिलान्यास किया गया लगभग 32 महिनों के अनवरत निर्माण कार्य के बाद 13 दिसम्बर 2021 मोदी जी द्वारा लोकार्पण किया गया | ललिता घाट के रास्ते प्रथम भारत माता के दर्शन होते हैं फिर अहिल्या बाई की मूर्ति है आगे चलकर ज्ञानवापी में नंदी जी के दर्शन एवं स्पर्श करने की सुविधा है जो आज के पूर्व संभव नहीं था वही दूसरी ओर काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा विभिन्न प्रकार की सुविधाएं प्राप्त करने हेतु सुगम दर्शन से लेकर रुद्राभिषेक विभिन्न आरती इत्यादि के लिए शुल्कों का प्रावधान कर जिस तरह से जन साधारण विशेष कर नित्य पूजार्चन करने वालों के लिए यह कष्टप्रद है किसी भी ज्योतिर्लिंग में इस तरह का व्यवसायी करण उचित नहीं है|बाबा विश्वनाथ जी के गर्भ गृह में प्रधानमंत्री जी की प्रेरणा से 60 कि. ग्रा.भार के सोने से गर्भ गृह में पत्तर चढ़ाने का कार्य किया गया है वर्तमान समय में ज्ञान वापी कूप नंदी बहुत चर्चा में हैं|

काशी विश्वनाथ मन्दिर
काशी विश्वनाथ मन्दिर
काशी विश्वनाथ मन्दिर
काशी विश्वनाथ मन्दिर
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काशी विश्वनाथ मन्दिर

काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर पिछले कई हजार वर्षों से वाराणसी में स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्‍ट स्‍थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ, गोस्‍वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ है। यहीं पर सन्त एकनाथजी ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पूरा किया और काशीनरेश तथा विद्वतजनों द्वारा उस ग्रन्थ की हाथी पर धूमधाम से शोभायात्रा निकाली गयी। महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा ढोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दृढ़ संकल्प से काशी कारीडोर के अन्तर्गत काशी विश्वनाथ जी के मंदिर का विस्तार किया गया जो अद्भुत अकल्पनीय साथ ही आश्चर्य जनित भी है प्रत्येक काशी वासियों ने ऐसी परिकल्पना भी नहीं की होगी |माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने 8 मार्च 2019 को काशी विश्वनाथ कारीडोर का शिलान्यास किया गया लगभग 32 महिनों के अनवरत निर्माण कार्य के बाद 13 दिसम्बर 2021 मोदी जी द्वारा लोकार्पण किया गया | ललिता घाट के रास्ते प्रथम भारत माता के दर्शन होते हैं फिर अहिल्या बाई की मूर्ति है आगे चलकर ज्ञानवापी में नंदी जी के दर्शन एवं स्पर्श करने की सुविधा है जो आज के पूर्व संभव नहीं था वही दूसरी ओर काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा विभिन्न प्रकार की सुविधाएं प्राप्त करने हेतु सुगम दर्शन से लेकर रुद्राभिषेक विभिन्न आरती इत्यादि के लिए शुल्कों का प्रावधान कर जिस तरह से जन साधारण विशेष कर नित्य पूजार्चन करने वालों के लिए यह कष्टप्रद है किसी भी ज्योतिर्लिंग में इस तरह का व्यवसायी करण उचित नहीं है|बाबा विश्वनाथ जी के गर्भ गृह में प्रधानमंत्री जी की प्रेरणा से 60 कि. ग्रा.भार के सोने से गर्भ गृह में पत्तर चढ़ाने का कार्य किया गया है वर्तमान समय में ज्ञान वापी कूप नंदी बहुत चर्चा में हैं|

काशी विश्वनाथ मन्दिर
काशी विश्वनाथ मन्दिर
काशी विश्वनाथ मन्दिर
काशी विश्वनाथ मन्दिर
कामाख्या मन्दिर

कामाख्या मंदिर भारत में सबसे पुराने मंदिरों में से एक है और स्वाभाविक रूप से, सदियों का इतिहास इसके साथ जुड़ा हुआ है | ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण आठवीं और नौवीं शताब्दी के बीच हुआ था |  भारतीय इतिहास के मुताबिक,16वीं सदी में इस मंदिर को एक बार नष्ट कर दिया गया था | फिर कुछ सालों बाद बिहार के राजा नारायण नरसिंह द्वारा 17वीं सदी में इस मंदिर का पुन: निर्माण कराया गया |

मूल मंत्र

या देवी सर्वभूतेषुकाम-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

यह माँ कामख्या देवी का मूल मंत्र है | माना जाता है इस मंत्र के उच्चारण से माता कामख्या देवी को प्रसन्न किया जा सकता है | इसके जप से कामरूपी समस्याओं का अंत हो जाता है| इस मंत्र 108 बार प्रतिदिन जपा जा सकता है साधारण रूप में.

 यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका महत्व तांत्रिक रूप से अधिक है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है । यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।

विशेष महत्त्व :

यह विश्व का सबसे बलिदान वाला मंदिर है | यहाँ पर माँ कामख्या देवी को भैसे की बलि देकर उसका सर माता के चरणों में चढ़ाया जाता है |  यहाँ सबसे बड़ा बलिस्थान है 

आरती समय :

प्रातः : 8:00 बजे से दोपहर १ बजे तक

दोपहर १ बजे से २ बजे तक मंदिर बंद रहता है दर्शन नहीं किये जा सकते हैं |

पुनः दोपहर २ बजे से रात्रि ८ बजे तक दर्शन किये जा सकते हैं |

EAST
कामाख्या मन्दिर

कामाख्या मंदिर भारत में सबसे पुराने मंदिरों में से एक है और स्वाभाविक रूप से, सदियों का इतिहास इसके साथ जुड़ा हुआ है | ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण आठवीं और नौवीं शताब्दी के बीच हुआ था |  भारतीय इतिहास के मुताबिक,16वीं सदी में इस मंदिर को एक बार नष्ट कर दिया गया था | फिर कुछ सालों बाद बिहार के राजा नारायण नरसिंह द्वारा 17वीं सदी में इस मंदिर का पुन: निर्माण कराया गया |

मूल मंत्र

या देवी सर्वभूतेषुकाम-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

यह माँ कामख्या देवी का मूल मंत्र है | माना जाता है इस मंत्र के उच्चारण से माता कामख्या देवी को प्रसन्न किया जा सकता है | इसके जप से कामरूपी समस्याओं का अंत हो जाता है| इस मंत्र 108 बार प्रतिदिन जपा जा सकता है साधारण रूप में.

 यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका महत्व तांत्रिक रूप से अधिक है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है । यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।

विशेष महत्त्व :

यह विश्व का सबसे बलिदान वाला मंदिर है | यहाँ पर माँ कामख्या देवी को भैसे की बलि देकर उसका सर माता के चरणों में चढ़ाया जाता है |  यहाँ सबसे बड़ा बलिस्थान है 

आरती समय :

प्रातः : 8:00 बजे से दोपहर १ बजे तक

दोपहर १ बजे से २ बजे तक मंदिर बंद रहता है दर्शन नहीं किये जा सकते हैं |

पुनः दोपहर २ बजे से रात्रि ८ बजे तक दर्शन किये जा सकते हैं |