संकटा देवी मंदिर करीब एक हजार साल से अधिक पुराना है। शहर के बीच स्थित यह मंदिर देवी भक्तों की श्रद्धा का केंद्र है। शहर के चार शक्ति पीठों में संकटा देवी मंदिर का प्रमुख स्थान है। इस मंदिर में माता लक्ष्मी की प्रतिमा है। इनके नाम पर ही शहर का नाम भी लक्ष्मीपुर हुआ, जो बाद में लखीमपुर कहलाया।
ऐसी किवदंती है कि इस मंदिर की स्थापना रुकमणी की इच्छा पर पशुपतिनाथ जाते समय महाभारत युद्ध के बाद श्रीकृष्ण ने की थी। उस दौरान श्रीकृष्ण ने जिन चार शक्तिपीठों की स्थापना की, उनमें यह पहला मंदिर है। कभी इस मंदिर के चारों ओर विशाल सरोवर हुआ करता था जो बाद में समाप्त हो गया। मंदिर का जीर्णोद्धार यहां के तत्कालीन महेवा स्टेट के राजाओं ने समय-समय पर कराया है। आज भी यह मंदिर राज परिवार के संरक्षण में है।
संकटा देवी मंदिर करीब एक हजार साल से अधिक पुराना है। शहर के बीच स्थित यह मंदिर देवी भक्तों की श्रद्धा का केंद्र है। शहर के चार शक्ति पीठों में संकटा देवी मंदिर का प्रमुख स्थान है। इस मंदिर में माता लक्ष्मी की प्रतिमा है। इनके नाम पर ही शहर का नाम भी लक्ष्मीपुर हुआ, जो बाद में लखीमपुर कहलाया।
ऐसी किवदंती है कि इस मंदिर की स्थापना रुकमणी की इच्छा पर पशुपतिनाथ जाते समय महाभारत युद्ध के बाद श्रीकृष्ण ने की थी। उस दौरान श्रीकृष्ण ने जिन चार शक्तिपीठों की स्थापना की, उनमें यह पहला मंदिर है। कभी इस मंदिर के चारों ओर विशाल सरोवर हुआ करता था जो बाद में समाप्त हो गया। मंदिर का जीर्णोद्धार यहां के तत्कालीन महेवा स्टेट के राजाओं ने समय-समय पर कराया है। आज भी यह मंदिर राज परिवार के संरक्षण में है।
लिलौटी नाथ मंदिर (लखीमपुर-खीरी) क्यों प्रसिद्ध है?
लिलौटी नाथ मंदिर का आकर्षण मुख्य रूप से इसकी विशालकाय शिवलिंग है जो मंदिर के मध्य में स्थापित है। मंदिर के बाहर भी बहुत सारी मूर्तियां हैं, जिनमें भगवान गणेश, माँ पार्वती और भगवान विष्णु की मूर्तियां शामिल हैं।
लिलौटी नाथ मंदिर का नाम इस मंदिर में विराजमान लिलौटी नाथ भगवान से रखा गया है। मंदिर का निर्माण भू-अभिलेखों के अनुसार सन् 1812 में हुआ था और इसके बाद कुछ बार इसे फिर से बनाया गया था। यह मंदिर स्थानीय लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इसे बड़े आदर से पूजा जाता है। इस मंदिर में विशेष अवसरों पर भक्तों की भीड़ बड़ी होती है, जैसे महाशिवरात्रि, श्रावण मास और नवरात्रि आदि।
लिलौटी नाथ मंदिर (लखीमपुर-खीरी) क्यों प्रसिद्ध है?
लिलौटी नाथ मंदिर का आकर्षण मुख्य रूप से इसकी विशालकाय शिवलिंग है जो मंदिर के मध्य में स्थापित है। मंदिर के बाहर भी बहुत सारी मूर्तियां हैं, जिनमें भगवान गणेश, माँ पार्वती और भगवान विष्णु की मूर्तियां शामिल हैं।
लिलौटी नाथ मंदिर का नाम इस मंदिर में विराजमान लिलौटी नाथ भगवान से रखा गया है। मंदिर का निर्माण भू-अभिलेखों के अनुसार सन् 1812 में हुआ था और इसके बाद कुछ बार इसे फिर से बनाया गया था। यह मंदिर स्थानीय लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इसे बड़े आदर से पूजा जाता है। इस मंदिर में विशेष अवसरों पर भक्तों की भीड़ बड़ी होती है, जैसे महाशिवरात्रि, श्रावण मास और नवरात्रि आदि।
नैमिषारण्य स्थित हनुमानगढ़ी मंदिर को बड़े हनुमान मंदिर के नाम से भी जानते हैं। माना जाता है कि भगवान श्रीराम-रावण युद्ध के समय अहिरावण ने जब राम तथा लक्ष्मण का अपहरण किया। तब हनुमान जी पातालपुरी गए जहां उन्होंने अहिरावण का वध किया और उसके बाद कंधों पर राम और लक्ष्मण को बैठाकर यही से दक्षिण दिशा यानि लंका की ओर प्रस्थान किया। अतः यहां दक्षिणमुखी हनुमान की मूर्ति प्रकट हुई। यहीं पर पाण्डवों ने महाभारत के बाद 12 वर्ष तपस्या की है। जिसे पांड़व किला कहते हैं यह मंदिर दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर के नाम से प्रचलित है, यह अत्यंत दुर्लभ है। यहां पर हनुमान जी की विशालकाय प्रतिमा है। इनका दर्शन श्रद्ालुओं को शांति और सुकून प्रदान करता है। और उसके सभी कष्ट कट जाते हैं।
नैमिषारण्य स्थित हनुमानगढ़ी मंदिर को बड़े हनुमान मंदिर के नाम से भी जानते हैं। माना जाता है कि भगवान श्रीराम-रावण युद्ध के समय अहिरावण ने जब राम तथा लक्ष्मण का अपहरण किया। तब हनुमान जी पातालपुरी गए जहां उन्होंने अहिरावण का वध किया और उसके बाद कंधों पर राम और लक्ष्मण को बैठाकर यही से दक्षिण दिशा यानि लंका की ओर प्रस्थान किया। अतः यहां दक्षिणमुखी हनुमान की मूर्ति प्रकट हुई। यहीं पर पाण्डवों ने महाभारत के बाद 12 वर्ष तपस्या की है। जिसे पांड़व किला कहते हैं यह मंदिर दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर के नाम से प्रचलित है, यह अत्यंत दुर्लभ है। यहां पर हनुमान जी की विशालकाय प्रतिमा है। इनका दर्शन श्रद्ालुओं को शांति और सुकून प्रदान करता है। और उसके सभी कष्ट कट जाते हैं।